बीजापुर - बस्तर की धरा पर जब देवी-देवताओं का मेला सजता है, तो आस्था, परंपरा और संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। बीजापुर का प्रसिद्ध देव चिकटराज मेला एक ऐसा ही आयोजन है, जो न सिर्फ धार्मिक श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि राजकोष निरीक्षण जैसी अनूठी परंपरा के लिए भी पहचाना जाता है।
देवताओं को न्योता, भव्य स्वागत
मेला आयोजन की परंपरा के अनुसार मेला समिति के प्रमुखों व्दारा पहले देव चिकटराज से अनुमति लेकर फिर उनके नाम पर जिले के विभिन्न देवी-देवताओं को न्यौता भेजा गया। आमंत्रण पाकर पोटानार से मारा देव, गोंगला से कनपराज देव, चेरपाल से पोतराज देव, गंगालूर से नंगा भीमा देव, तुमनार से वेलामारा देव, चिन्नाकवाली से परसुंगा-जिबोकोटी, मुनगा से मुनगा मारा देव और कोड़ेपाल से पेदामारा देव इस सांस्कृतिक समागम में शामिल हुए हैं।
चिकटराज देव की भूमिका और राजकोष निरीक्षण की परंपरा
इस मेले की सबसे खास और प्राचीन परंपरा में से एक है देव चिकटराज द्वारा तहसील कार्यालय पहुंचकर राजकोष निरीक्षण करना। चिकटराज को खजाने के खंजाची के रूप में मान्यता प्राप्त है।
बीजापुर-गंगालूर मार्ग पर स्थित मंदिर में 6-7 फुट लंबे बांसनुमा काष्ठ में विराजमान चिकटराज देव, हर साल की तरह इस बार भी अपनी विशेष परंपरा निभाने तहसील कार्यालय पहुंचे। यहां उन्होंने द्वारपालों की उपस्थिति में राजकोष का विधिवत निरीक्षण किया। निरीक्षण के बाद देवता ने व्यवस्थाओं से संतुष्ट होकर तहसील परिसर में “देवखेलनी नाच” उत्सव करवाया, जिसमें पारंपरिक नृत्य, गीत और ग्रामीणों की भागीदारी देखने को मिला।
मुख्य मार्ग तक पहुंचने पर शहर के व्यापारियों ने फूल-मालाओं, आतिशबाजी और पीले वस्त्रों से आराध्य देव का स्वागत किया। श्रद्धालुओं ने चरण पखारकर आशीर्वाद लिया।
मेले में उमड़ी श्रद्धा की भीड़
बीजापुर का चिकटराज मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि हजारों ग्रामीणों और आदिवासियों की आस्था का केंद्र है। यहां पेरमा पुजारी, गायता, सियान, मांझी जैसे परंपरागत धार्मिक प्रतिनिधि पूजा-पाठ संपन्न कराते हैं। श्रद्धालु मन्नतें मांगते हैं और मान्यता है कि चिकटराज देव की दरबार में सच्चे दिल से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
देव चिकटराज मंदिर के पास स्थित मावली गुड़ी में गणेश, शिव, विष्णु, लक्ष्मी आदि की प्राचीन मूर्तियां स्थापित हैं, जो ऐतिहासिक महत्व और कला के सौंदर्य को दर्शाती हैं। इस आयोजन में लगातार पूजा-अर्चना, नृत्य-गीत और दर्शन का क्रम जारी है। 16 अप्रैल को सभी देवी-देवताओं को सम्मानपूर्वक विदा किया जाएगा, जिससे मेला विधिपूर्वक संपन्न होगा।
बीजापुर का चिकटराज मेला वह अनोखी परंपरा है जहां देव खुद तहसील में निरीक्षण करने आते हैं और नगरवासी बाबा चिकटराज के लिए फूल-मालाओं से स्वागत, आतिशबाजी करते है। यह मेला एक मिसाल है जहां आस्था, संस्कृति, और प्रशासन का अनोखा संयोग देखने को मिलता है।
