जवानों की कार्रवाई से बौखलाए नक्सली, शांति वार्ता को लेकर चौथा प्रेस नोट जारी, नक्सली बोले- एक माह के लिए बंद हो गोलीबारी

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बीजापुर - माओवादियों के उत्तर-पश्चिम सब जोनल ब्यूरो के प्रभारी रूपेश ने 17 अप्रैल को एक प्रेस नोट जारी कर एक महीने के युद्धविराम की घोषणा की मांग की है। उन्होंने इस पत्र के माध्यम से शांति वार्ता को आगे बढ़ाने की इच्छा जाहिर की है। यह इस प्रकार का चौथा प्रेस नोट है, जो माओवादियों की ओर से हालिया समय में जारी किया गया है।

प्रेस नोट में रूपेश ने छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा के उस बयान का स्वागत किया है जिसमें उन्होंने शांति वार्ता की संभावना पर सकारात्मक रुख जताया था। रूपेश ने आग्रह किया है कि दोनों पक्षों को एकतरफा हिंसा रोककर युद्धविराम की घोषणा करनी चाहिए ताकि बातचीत के लिए अनुकूल माहौल बन सके।

रूपेश ने यह भी मांग की है कि उनके कुछ साथियों को माओवादी पार्टी की केंद्रीय और स्पेशल जोनल कमेटी से संपर्क करना है, जिसके लिए सरकार को उन्हें सुरक्षा देने की गारंटी देनी चाहिए। उन्होंने दावा किया कि हाल ही में बीजापुर और कोंडागांव में सुरक्षा बलों की कार्रवाई में उनके कई साथियों की हत्या की गई है। उन्होंने इन कार्रवाइयों पर तुरंत रोक लगाने की अपील भी की है।

माओवाद पर सरकारी अभियान और मौजूदा स्थिति

बीते कुछ महीनों से छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग, विशेषकर बीजापुर और सुकमा जैसे क्षेत्रों में राज्य व केंद्रीय सुरक्षा बलों ने बड़े पैमाने पर नक्सल विरोधी अभियान चलाए हैं। इन अभियानों में कई माओवादी मारे गए हैं और उनके ठिकाने, हथियार व संचार नेटवर्क ध्वस्त किए गए हैं। माओवादी संगठन का ढांचा इस समय गंभीर संकट में है और नेतृत्व तंत्र बिखरता नजर आ रहा है।

इस संदर्भ में रूपेश का यह बयान सवाल खड़े करता है "क्या यह शांति की दिशा में ईमानदार पहल है, या फिर एक रणनीतिक विराम है ताकि संगठन पुनर्गठित हो सके?"

राजनीतिक प्रतिक्रिया और माओवादियों की चुप्पी

प्रेस नोट में यह भी उल्लेख है कि भाजपा और कांग्रेस ने माओवादियों के पूर्व बयानों की आलोचना की है, लेकिन रूपेश ने साफ किया है कि वे फिलहाल इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देंगे क्योंकि उनकी प्राथमिकता शांति वार्ता है।

प्रेस नोट के अंत में रूपेश ने देश के जनवादी प्रेमियों से अपील की है कि वे इस युद्धविराम की मांग का समर्थन करें और एक स्थायी समाधान के लिए सरकार पर वार्ता का दबाव बनाएं।

आगे क्या?

अब गेंद सरकार के पाले में है। क्या सरकार इस युद्धविराम प्रस्ताव को स्वीकार कर शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगी, या इसे माओवादियों की एक और साजिश मानते हुए जवाबी कार्रवाई जारी रखेगी – इसका फैसला आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।

यह देखना अहम होगा कि सरकार इस बयान को माओवादियों की हार की स्वीकारोक्ति मानती है या इसे एक रणनीतिक चाल समझती है।


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