मुर्गा लड़ाई - 5 दिनों का रोमांच, लाखों का दांव और हजारों की भीड़ के साथ पारंपरिक खेल का जलवा

0

 

छत्तीसगढ़ (बीजापुर) - बस्तर अंचल की सांस्कृतिक धरोहर और मनोरंजन का मुख्य आकर्षण मानी जाने वाली मुर्गा लड़ाई आज भी ग्रामीणों के बीच विशेष स्थान रखती है। यह पारंपरिक खेल न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि इसमें हजारों - लाखों रुपये का दांव लगाकर ग्रामीण अपनी किस्मत भी आजमाते हैं। बीजापुर क्षेत्र के हाट बाजारों में हर सप्ताह कहीं न कहीं मुर्गा बाजार का आयोजन होता है।



रुद्रारम में 5 दिवसीय अंतरराज्य मुर्गा बाजार का आयोजन


मकर संक्रांति के अवसर पर भोपालपटनम ब्लॉक के रुद्रारम गांव में 13 जनवरी से 17 जनवरी तक 5 दिवसीय मुर्गा बाजार का आयोजन किया गया। इस आयोजन में भाग लेने के लिए न केवल स्थानीय ग्रामीण बल्कि दूर-दूर से शौकीन पहुंचे हैं।



लड़ाकू मुर्गों का दंगल



इस बाजार में लगभग 5 हजार लड़ाकू मुर्गे लाए गए है। इन मुर्गों को विशेष देखभाल और तैयारी के बाद लड़ाई के लिए तैयार किया गया है। मालिक महीनों तक अपने मुर्गों को काजू, बादाम खिलाने और पानी में तैराने जैसे कड़ी ट्रेनिंग के जरिए उन्हें लड़ाई के लिए तैयार करते हैं।


इस खेल में दो मुर्गों को आमने-सामने लड़ाया जाता है, वही जीतने वाला मुर्गा अपने मालिक की प्रतिष्ठा और गौरव बढ़ाता है और हारने वाले मुर्गे को विजेता के मालिक को सौंप दिया जाता है, जो इस खेल की एक अनोखी परंपरा को दर्शाता है।



दर्शकों की भीड़ सट्टेबाजों का संगम



इस बार के मुर्गा लड़ाई आयोजन में अब तक 15 हजार से अधिक दर्शक उमड़ चुके हैं। इस खेल की लोकप्रियता इतनी अधिक है कि बीजापुर जिले के अलावा दंतेवाड़ा, बस्तर के साथ-साथ तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से भी बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंच रहे हैं।



दांव पर लगते हैं लाखों रुपये




मुर्गा लड़ाई में स्थानीय ग्रामीण के अलावा बाहर से आए लोग हजारों-लाखों रुपये का दांव लगा रहे हैं, जीता हुआ व्यक्ति खुशी मना रहा है वहीं हरा हुआ दुखी हो रहा है।


 हर लड़ाई के दौरान, मैदान में रोमांच चरम पर होता है, और दर्शकों का उत्साह देखते ही बनता है।


जीतने वाले मुर्गे के मालिक की प्रतिष्ठा बढ़ जाती हैं, जिससे यह खेल न केवल मनोरंजन का साधन बनता है, बल्कि ग्रामीणों के लिए सम्मान और सम्मान की प्रतीक भी है। दांव लगाने वाले इसे एक तरह से किस्मत आजमाने और परंपरा को जीवित रखने का अवसर मानते हैं।


मुर्गा लड़ाई केवल एक खेल नहीं है, बल्कि यह बस्तर की संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है। यह आयोजन ग्रामीणों के लिए न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि उत्सवधर्मिता का हिस्सा भी है।



Image

Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)
Blogger Templates