बीजापुर - जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की लापरवाही का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। एक बार फिर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में नवजात की मौत ने अस्पताल प्रबंधन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। परिजनों का आरोप है कि अगर समय पर डॉक्टर और नर्स ने जिम्मेदारी दिखाई होती, तो बच्चे की जान बचाई जा सकती थी।
यह कोई पहली घटना नहीं है इससे पहले आवापल्ली अस्पताल में भी एक बच्चें की मौत के बाद परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन पर लापरवाही का आरोप लगाया था। अब ताजा मामला भोपालपटनम सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का है जहाँ कोत्तावड़ला संतोष की पत्नी अनिता कोत्तावड़ला ने 5 नवंबर के सुबह 10 बजकर 25 मिनट पर बेटे को जन्म दिया और नर्स और डाक्टर की लापरवाही के कारण नौ महिने अपने कोख में संभालकर रखी एक मां को अपने बच्चें को खोना पड़ा।
परिजनों के अनुसार डिलीवरी दो नर्सों के व्दारा कराया गया और बच्चे को सामान्य बताते हुए मां से दूध पिलाने को कहा गया। 1 घंटे के बाद डॉक्टर आकर बच्चे की जांच करते हुए कहते हैं कि बच्चे का जो लिंग है वह असामान्य और टेढ़ा है। रात होते-होते बच्चे का पेट असामान्य रूप से फूलने लगा, लेकिन अस्पताल स्टाफ ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। अगले दिन 6 तारीख की सुबह जब दाई गुरला वनिता बच्चे की मालिश कर रही थी, तब उसने देखा कि बच्चे का गुदा द्वार ही नहीं है। उसने तुरंत नर्स को बुलाकर जानकारी दी, मगर नर्स ने उल्टा फटकार लगाते हुए कहा पहले क्यों नहीं बताया? बाद में नर्स ने डॉक्टर को काॅल कर सूचना दी। डॉक्टर के आने के बाद बच्चे को आनन-फानन में सुबह 10: 30 बजे जिला अस्पताल बीजापुर रिफर किया गया।
जिला अस्पताल पहुंचने के बाद वहां के डॉक्टर ने बच्चें को देखते हुए कहने लगे कि कौन डॉक्टर देखा है? इस बच्चे की हालत खराब है इतने लापरवाह कैसे हो सकते हैं? और तुरंत 3:30 बजे रायपुर के लिए रिफर किया गया। कांकेर के पास पहुंचने के बाद नवजात बच्चें ने दम तोड़ दिया।
मृत बच्चे के नाना रमेश किष्टाद्री ने अस्पताल प्रबंधन पर गंभीर आरोप लगाया हैं। उनका कहना है अगर डिलीवरी के वक्त ही नर्स या डॉक्टर बता देते कि बच्चे को गुदा द्वार नहीं है, तो हम तुरंत जिला अस्पताल या किसी बड़े अस्पताल में इलाज करवाने ले जाते। लेकिन अस्पताल के डॉक्टर और नर्स ने बच्चे की ठीक से जांच तक नहीं की। यही लापरवाही हमारे बच्चे की मौत का कारण बना।
वहीं इस मामले पर बीएमओ चलपति राव ने बताया कि बच्चा को जन्म से ही एनल एट्रेसिया है जिसमें गुदा नहीं होता या सामान्य रूप से खुला नहीं होता है। पीडियाट्रिक सर्जन जो जन्म से लेकर किशोरों तक के बच्चों की सर्जरी में विशेषज्ञ होते हैं वे ही ऐसे बच्चों की सर्जरी करते हैं इसलिए जैसे ही हमें स्थिति की जानकारी मिली बच्चे को तुरंत रिफर किया गया।
हालांकि परिजन अस्पताल प्रबंधन के इस तर्क से असहमत हैं। उनका कहना है कि अगर यह जन्मजात स्थिति थी, तो दोनों नर्सों और डाक्टर ने उसे डिलीवरी के समय क्यों नहीं पहचाना? प्रसव के बाद बच्चे के लिंग को देखा गया तब वह असामान्य लगी तो पूरे शरीर की जांच क्यों नहीं की गई? जन्म के तुरंत बाद बच्चे की पूरी जांच की जाती, तो स्थिति समय रहते सामने आ जाती और बच्चे की जान बचाई जा सकती थी।
इस घटना ने एक बार फिर ग्रामीण क्षेत्रों की चिकित्सा व्यवस्था की असलियत उजागर कर दी है। जहाँ अस्पताल तो हैं, लेकिन जिम्मेदारी और संवेदनशीलता दोनों का अभाव है। यह कोई पहली घटना नहीं है आवापल्ली अस्पताल में भी इसी तरह लापरवाही से बच्चें की मौत हुई थी, लेकिन किसी पर कार्रवाई नहीं हुई। अब फिर एक मासूम की जान चली गई, अगर बच्चा जन्म से एनल एट्रेसिया से पीड़ित था, तो यह बात डिलीवरी होने के बाद क्यों नहीं बताई गई? परिजन इस मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषी कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है। क्या दोषियों पर कार्रवाई होगी या फिर यह मामला भी फाइलों में दफन हो जाएगा?


