आश्रम में न भोजन, न पानी, न अधीक्षक की कोई जिम्मेदारी, दो साल से मरम्मत को गई क्रेडा की मोटर विदेश यात्रा पर

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भूखे मासूम, फटे शौचालय और जिम्मेदार अधिकारियों की नींद मोटी दाल-रोटी में गुम



बीजापुर - माता-पिता इस भरोसे से अपने बच्चों को आश्रम भेजते हैं कि अधीक्षक माता-पिता की भूमिका निभाकर उन्हें सुरक्षित माहौल और अच्छी शिक्षा देंगे। लेकिन एक आश्रम ऐसा भी है जिसकी हकीकत इससे उलट है यहां बच्चे भूख, गंदगी और लापरवाही के बीच दम तोड़ते सपनों के साथ जी रहे हैं।

भोपालपटनम ब्लॉक का प्राथमिक बालक आश्रम शाला गोरला, जहां मासूम बच्चों को शिक्षा और देखभाल मिलनी चाहिए थी, आज पूरी तरह अव्यवस्था और लापरवाही नजर आ रही है। मंगलवार सुबह 9 बजे तक आश्रम में न तो चूल्हा जला और न ही बच्चों को नाश्ता या भोजन मिला। छोटे-छोटे बच्चे भूखे पेट इधर-उधर भटकते नजर आए और जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने दबी जुबान से कहा सुबह से कुछ नहीं मिला। क्या अधीक्षक का काम बच्चों की परवरिश करना है या उन्हें उपवास कराना? 

अधीक्षक मोहन पनवलकर का आलम यह है कि रात को आश्रम में रुकना गवारा नहीं, जिम्मेदारी अपने परिजनों पर डाल दी है। सुबह-शाम थोड़ी मात्रा में चावल-दाल पहुंचा दी जाती है, मानो बच्चों की भूख कोई मोलभाव की वस्तु हो। सूत्रों के हवाले से यहां भी खबर है कि अधीक्षक के परिजनों द्वारा बच्चों को मारने की बातें भी सामने आई है। इतना ही नहीं, हाल ही में कीड़े लगे चावल पकाने को दिए जाने का मामला भी सामने आया था। तब ग्रामीणों और जिम्मेदारों ने खरी-खोटी सुनाई थी, आखिर ऐसे लापरवाह अधीक्षक को बचाया क्यों जा रहा है? कौन से अधिकारी इनके पीछे खड़े हैं?


हालात यहीं नहीं रुकते, आश्रम में शौचालय दर्जनों की संख्या में बने हुए है मगर शौचालय की टंकियां फटी हुई हैं। मजबूरन मासूम बच्चों को जंगल में शौच के लिए जाना पड़ रहा है। यह जिम्मेदार अधिकारियों और विभाग के लिए शर्मनाक है बल्कि बच्चों की जान और सेहत के साथ खुला खिलवाड़ है।

इससे भी बड़ा सवाल क्रेडा विभाग की लापरवाही पर उठ रहा है। आश्रम में सौर ऊर्जा से पानी की व्यवस्था के लिए टांकी और मोटर लगाया गया था। मोटर के खराब होने पर दो साल पहले विभाग के कर्मचारी मरम्मत के नाम पर निकाल ले गए थे। लेकिन आज तक वह मोटर वापस नहीं आया। क्या सम्बन्धित विभाग वह मोटर को मरम्मत कराने को विदेश भेज दिया है, जो दो साल से अब तक रिपेयर होकर नहीं लौटा?

इस संबंध में जब मंडल संयोजक नंदकुमार मारकोण्डा से फोन पर संपर्क किया गया, उन्होंने कहा कि 9 बजे तक बच्चों के लिए नाश्ता और भोजन नहीं बनाना अधीक्षक की गंभीर लापरवाही है। दो दिन पहले आश्रम का निरीक्षण किया गया, शौचालय और पानी जैसी समस्याओं को उच्च अधिकारियों को जानकारी दे दी गई हैं।

ग्रामीण भी नाराज है, क्योंकि सवाल छोटे-छोटे बच्चों के जीवन और भविष्य का है। आखिरकार ये अधिकारी किसका इंतजार कर रहे हैं। बच्चों के भूख से सड़क पर गिरने का या किसी हादसे का?

अब आगे देखना यह होगा कि क्या प्रशासन मासूम बच्चों की भूख और बदहाली पर आंख मूंदकर बैठेगा या फिर अधीक्षक की जिम्मेदारियों की अनदेखी को रोकते हुए नए अधीक्षक की नियुक्ति कर आश्रम की व्यवस्थाओं को दुरुस्त करेगा।



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