बीजापुर - शिक्षक दिवस पर हम अक्सर उन गुरुओं को नमन करते हैं, जो अपने ज्ञान और परिश्रम से बच्चों का भविष्य संवारते हैं। बीजापुर जिले के प्राथमिक शाला गुन्लापेटा की प्रधानाध्यापिका श्रीमती वरदेवी पाणिग्राही की कहानी अलग ही मिसाल पेश करती है। जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्य से कभी पीछे न हटी।
दिव्यांग नहीं, इच्छाशक्ति की पहचान
श्रीमती वरदेवी पाणिग्राही शारीरिक रूप से अशक्त हैं। वे स्वयं चल-फिर नहीं पाती लेकिन उनके संकल्प और कर्तव्यनिष्ठा ने इस कमी को कभी बाधा नहीं बनने दिया। हर सुबह उनके पति रोहित उन्हें बाइक से स्कूल तक छोड़ते हैं और गोद में उठाकर कक्षा तक ले जाते हैं। स्कूल के भीतर यदि एक कक्षा से दूसरी कक्षा जाना होता है, तो सहकर्मी शिक्षक और चपरासी मिलकर उन्हें उनकी कुर्सी सहित वहाँ तक पहुँचाते हैं।
स्कूल स्टाफ बताता है कि कठिन परिस्थिति के बावजूद वरदेवी कभी पीछे नहीं हटती, उनका साहस और सेवा-भाव ही उन्हें हर दिन बच्चों के बीच लाता है। बच्चे भी कहते हैं कि "मैडम का पढ़ाने का तरीका बेहद अच्छा है और वे हमेशा पूरे मन से पढ़ाती हैं।"
19 साल का समर्पण, 2022 में बनीं प्रधानाध्यापिका
श्रीमती वरदेवी पाणिग्राही शिक्षा कर्मी वर्ग -3 व जुलाई 2006 और पिछले 19 वर्षों से वे लगातार बच्चों को शिक्षा की रोशनी दे रही हैं। वर्ष 2022 में प्रधानाध्यापिका के पद पर पदोन्नति मिली।
जिला शिक्षा अधिकारी लखन लाल धनेलिया ने कहा कि "श्रीमती वरदेवी पाणिग्राही का पूरा सफर संघर्ष से भरा हुआ है। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उनका समर्पण और लगन बच्चों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। ऐसे शिक्षकों को जिला स्तर पर, बल्कि राज्य स्तर पर भी सम्मान मिलना चाहिए।"
श्रीमती वरदेवी की यह कहानी सिर्फ एक शिक्षिका की नहीं, बल्कि जीवन के साहस, कर्तव्यनिष्ठा और अदम्य इच्छाशक्ति का उदाहरण है। जब हालात साथ न दें, लेकिन इंसान अपने कर्तव्य को सर्वोपरि माने वहीं असली शिक्षक कहलाता है। यही वजह है कि इस शिक्षक दिवस पर श्रीमती वरदेवी पाणिग्राही समाज के लिए प्रेरणा और बच्चों के लिए उम्मीद की किरण बनकर सामने आती हैं।


