शांति वार्ता की अपील के बीच माओवादी संगठन का आरोप - "बीजापुर-दंतेवाड़ा मुठभेड़ फर्जी, कामरेड रेणुका और सुधीर को गिरफ्तार कर की गई हत्या"

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बीजापुर - छत्तीसगढ़ में एक ओर जहां माओवादी संगठन के वरिष्ठ नेता अभय ने शांति वार्ता की पेशकश करते हुए प्रेस विज्ञप्ति जारी की है, वहीं दूसरी ओर राज्य के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा द्वारा माओवादी हिंसा के विरुद्ध "जीरो टॉलरेंस" नीति की घोषणा के बाद अब माओवादी संगठन की दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी (DSZC) ने एक तीव्र प्रेस बयान जारी किया है। इस बयान में 31 मार्च को बीजापुर और दंतेवाड़ा की सीमा पर हुई पुलिस मुठभेड़ को "फर्जी और सुनियोजित हत्या" करार दिया गया है।


कामरेड रेणुका की ‘फर्जी मुठभेड़’ में हत्या का आरोप



प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, 55 वर्षीय कामरेड गुम्मडावेल्लि रेणुका उर्फ भानू उर्फ चैते को बीजापुर जिले के बेलनार गांव में अस्वस्थता के कारण एक घर में विश्राम के दौरान पुलिस ने 31 मार्च की सुबह 4 बजे गिरफ्तार किया। माओवादी संगठन का दावा है कि गिरफ्तारी के बाद छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की खुफिया एजेंसियों ने उनसे घंटों पूछताछ की और फिर सुबह 9 से 10 बजे के बीच उन्हें इंद्रावती नदी के किनारे ले जाकर गोली मार दी गई।





पुलिस द्वारा इस मुठभेड़ को सशस्त्र संघर्ष बताने और एक इनसास रायफल बरामद होने के दावे को संगठन ने खारिज करते हुए कहा है कि यह पूरी तरह "झूठा प्रचार" है।





कामरेड रेणुका, तेलंगाना के जनगाम जिले की मूल निवासी थीं और उन्होंने तिरुपति से एलएलबी की पढ़ाई प्रथम श्रेणी में पूरी की थी। पिछले 35 वर्षों से वह क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़ी रहीं, खासकर महिला मुक्ति आंदोलन में। वे 'प्रभात', 'संघर्षरत महिला' और गोंडी भाषा की पत्रिका 'लड़ेमायना' के संपादन और वितरण में सक्रिय थीं। संगठन ने उन्हें एक क्रांतिकारी बुद्धिजीवी, लेखिका और जननेत्री बताते हुए उनकी हत्या को अपूरणीय क्षति करार दिया।


कामरेड सुधीर की हत्या का भी आरोप



25 मार्च की एक अन्य घटना का उल्लेख करते हुए माओवादी संगठन ने कहा कि कामरेड लंकेश्वरपु सारय्या उर्फ सुधीर, जो इंद्रावती एरिया कमेटी के सदस्य और 'जनताना सरकार' के गुरुजी थे, को भी बोड़गा गांव से गिरफ्तार कर हत्या कर दी गई। पुलिस ने इस घटना को भी मुठभेड़ बताया था, जबकि संगठन का कहना है कि सुधीर और कुछ ग्रामीणों को गांव के बाहर ले जाकर मारा गया।


"दमन और लाशों की गिनती से शांति नहीं आएगी" - विकल्प


संगठन के प्रवक्ता विकल्प ने आरोप लगाया है कि यह सब दमनकारी रणनीति उस कॉर्पोरेट एजेंडे का हिस्सा है जिसके तहत आदिवासी क्षेत्रों की प्राकृतिक संपदाएं देशी-विदेशी कंपनियों को सौंपने की तैयारी की जा रही है। वक्तव्य में कहा गया है कि जंगलों में मुठभेड़ों के नाम पर आदिवासियों की लाशें गिनकर राज्य अपनी ‘सफलता’ माप रहा है।


जहां एक ओर माओवादी नेता अभय ने बातचीत के जरिए समाधान का प्रस्ताव रखा है, वहीं संगठन के इस बयान से साफ है कि माओवादियों के बीच दमन के अनुभव को लेकर गहरा आक्रोश है। यह प्रेस विज्ञप्ति उस कथित विश्वासघात और उत्पीड़न की ओर इशारा करती है, जिसे माओवादी वार्ता की राह में सबसे बड़ी बाधा मानते हैं।


प्रवक्ता विकल्प ने देशभर के जनवादी, प्रगतिशील और मानवाधिकार संगठनों से अपील की है कि वे इन घटनाओं की स्वतंत्र जांच की मांग करें और ग्राउंड रिपोर्टिंग के लिए घटनास्थल का दौरा करें। माओवादियों ने जनता से सरकारी साजिश को समझने, उसे उजागर करने और आदिवासियों व क्रांतिकारियों के "नरसंहार" को रोकने के लिए आवाज़ उठाने की अपील की है।

 



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