बीजापुर - जिले के उसूर विकासखंड अंतर्गत दुगईगुड़ा पोटा केबिन में अध्ययनरत तीसरी कक्षा के छात्र नीतीश धुर्वा की मौत ने जिले की शिक्षा व्यवस्था और जिम्मेदार अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिया हैं। जिन्नप्पा गांव निवासी नीतीश की मौत उल्टी-दस्त की वजह से हुई, लेकिन चार दिनों तक उसे अस्पताल न ले जाकर पोटा केबिन में ही रखने की घोर लापरवाही उसके जीवन पर भारी पड़ गई।
इस मामले में कांग्रेस विधायक विक्रम मंडावी ने गुरुवार को जिला मुख्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में गंभीर आरोप लगाए और कई चौंकाने वाले खुलासे किए।
विधायक मंडावी ने बताया कि जिन्निप्पा गांव निवासी नीतीश की परीक्षा 1 अप्रैल से शुरू होने वाली थी, लेकिन उससे पहले 29 मार्च को पोटा केबिन से एक फोन आया जिसमें बताया गया कि नीतीश की तबीयत खराब है। जब मां रतनी धुर्वा पोटा केबिन पहुंची तो उन्होंने देखा कि बच्चा कपड़े के बिना बिस्तर पर पड़ा है और उसकी हालत खराब है। इसके बावजूद वहां के कर्मचारियों ने मां पर दबाव बनाया कि वे नीतीश को घर ले जाएं, जबकि परीक्षा सिर पर थी।
बीमार नीतीश की देखभाल में लापरवाही, दो दिन बाद मौत
नीतीश को उसी दिन घर ले जाया गया, लेकिन उसकी तबीयत और बिगड़ती गई। किसी प्रकार की चिकित्सा सहायता नहीं मिल पाने के कारण 31 मार्च को शाम 6 बजे उसकी मौत हो गई। परिजनों का कहना है कि नीतीश पोटा केबिन में ही बीमार हुआ था, और वहां उसकी देखभाल नहीं की गई।
शिक्षा विभाग पर फर्जी पंचनामा और मुआवजे का आरोप
इस हृदयविदारक घटना के बाद शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर उंगली उठनी शुरू हो गई है। विधायक विक्रम मंडावी ने आरोप लगाया कि बीईओ, बीआरसी और पोटा केबिन अधीक्षक ने मृतक के परिजनों को 45,000 रुपये देकर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की। उन्होंने बताया कि 5,000 रुपये एडवांस में दिए गए और शेष 40,000 रुपये बाद में देने का आश्वासन दिया गया। साथ ही एक फर्जी पंचनामा तैयार किया गया, जिस पर परिजनों से जबरन हस्ताक्षर करवाए गए, जबकि गांव में इस विषय पर कोई बैठक भी नहीं बुलाई गई।
अधीक्षक को नहीं थी छात्र की हालत की जानकारी!
विधायक मंडावी ने बताया कि जब कांग्रेस की पांच सदस्यीय जांच समिति ने पोटा केबिन का दौरा किया, तब अधीक्षक भास्कर बोडके ने खुद कहा कि उन्हें नीतीश की मौत की जानकारी 1 अप्रैल को मिली, यानी मौत के दो दिन बाद। यह बयान विभागीय लापरवाही और जवाबदेही की कमी को स्पष्ट दर्शाता है।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी द्वारा गठित जांच समिति ने मृतक के गांव जिन्निप्पा और दुगईगुड़ा पोटा केबिन जाकर मृतक के परिजनों, अधीक्षक, स्टाफ और सहपाठियों से बातचीत की। रिपोर्ट में स्पष्ट हुआ कि छात्र की हालत गंभीर होने के बावजूद कोई चिकित्सकीय सहयोग नहीं मिला और विभागीय अधिकारियों ने मामले को दबाने की कोशिश की।
क्या आदिवासी छात्रों की जान की कोई कीमत नहीं?
विधायक मंडावी ने भाजपा सरकार पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि बीजापुर जैसे आदिवासी बहुल जिलों में छात्र-छात्राओं की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं रह गई है। उन्होंने कहा कि आए दिन छात्रावासों, आश्रमों और पोटा केबिनों से लापरवाही के मामले सामने आते हैं, लेकिन कभी किसी जिम्मेदार अधिकारी पर कार्रवाई नहीं होती।
विधायक ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि इस मामले में उच्चस्तरीय जांच नहीं हुई और दोषियों पर कड़ी कार्यवाही नहीं की गई, तो कांग्रेस पार्टी आने वाले दिनों में धरना प्रदर्शन और आंदोलन करेगी।
छात्र की बिगड़ती हालत पर अधीक्षक को जानकारी क्यों नहीं थी? बीमार बच्चे को अस्पताल न ले जाकर घर भेजने का दबाव क्यों? फर्जी पंचनामा बनाकर परिजनों से जबरन हस्ताक्षर क्यों करवाए गए? अब तक इस मामले में किसी जिम्मेदार अधिकारी पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?

