वादा कर भूला शासन, पंचायत सचिवों की अनिश्चितकालीन हड़ताल से कामकाज ठप - अब जंतर-मंतर की तैयारी

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बीजापुर (भोपालपटनम) - शासन की अनदेखी और वादाखिलाफी से आक्रोशित पंचायत सचिवों की अनिश्चितकालीन हड़ताल जनपद पंचायत भोपालपटनम में जोर पकड़ती जा रही है। प्रदेश पंचायत सचिव संघ के आह्वान पर 17 मार्च से शुरू हुई यह हड़ताल लगातार जारी है, जिसमें सचिव शासकीयकरण की मांग को लेकर डटे हुए हैं।


प्रदेश भर के सचिवों की यह हड़ताल अब आंदोलन का रूप लेती जा रही है। सचिव संघ ने साफ चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने जल्द ही कोई ठोस निर्णय नहीं लिया, तो 21 अप्रैल से दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन शुरू किया जाएगा।


चुनाव जीतने के लिए किया वादा, अब निभाने से इंकार?



सचिव संघ अध्यक्ष श्री दुधी श्रीनिवास ने बताया 2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में पंचायत सचिवों के शासकीयकरण का वादा किया था। लेकिन सरकार बनने के बाद से अब तक इस वादे को निभाने की दिशा में कोई पहल नहीं की गई। इससे सचिवों में भारी नाराजगी है और वे इसे विश्वासघात मानते हुए अनिश्चितकालीन हड़ताल पर उतर आए हैं।


रोजाना के विरोध कार्यक्रम तय, दबाव बढ़ाने की रणनीति


पंचायत सचिव संघ ने आंदोलन को धार देने के लिए दिन-प्रतिदिन के कार्यक्रम में 2 से 6 अप्रैल जनपद स्तर पर धरना प्रदर्शन, 7 अप्रैल जिला मुख्यालय में रैली एवं प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा जाएगा, 8 अप्रैल सभी जनपदों में नगाड़ा बजाकर सरकार के खिलाफ विरोध, 9 अप्रैल जनपद स्तर पर रामायण गान के माध्यम से सांस्कृतिक विरोध घोषित किया है।


कामकाज ठप, ग्रामीण परेशान


लगातार हड़ताल की वजह से पंचायत स्तर पर कामकाज पूरी तरह से ठप हो गया है। ग्रामीण विकास योजनाओं सहित अनेक जनहित कार्य अटक गए हैं। इसका सीधा असर ग्रामीण जनता पर पड़ रहा है।


इस हड़ताल में जनपद पंचायत भोपालपटनम के सचिव संघ अध्यक्ष श्री दुधी श्रीनिवास के नेतृत्व में ब्लॉक सचिव भगत शंकर, कोरम विजय, कुम्मर सत्यम, अप्पाजी वैकुंलटम, तलांडी निम्मैया, पारेट आनंद, रमेश अरिगेल, रवि दुर्गम, देवर लक्ष्मीपति, अल्लेम कृष्णाराव, कोड़े सुधाकर, दुम्पा लक्ष्मीनारायण, उप्पल संतोषी, राधा करमरका, मट्टी अरुण, चापा गणपत और सदासह मण्डावी  सचिव धरना स्थल पर मौजूद हैं और संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।


प्रदेश पंचायत सचिव संघ ने सरकार को स्पष्ट संदेश दिया है कि अब यह आंदोलन "आर-पार की लड़ाई" है। जब तक शासकीयकरण की मांग पूरी नहीं होती, तब तक सचिव पीछे नहीं हटेंगे। यदि शासन-प्रशासन ने फिर भी चुप्पी साधे रखी, तो दिल्ली का जंतर-मंतर अगला रणक्षेत्र होगा।


अब देखना यह है कि सरकार अपने वादे को निभाती है या फिर सचिवों को राजधानी तक आंदोलन ले जाने के लिए मजबूर करती है।




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