आदिवासी संस्कृति और परंपरा के संरक्षण के लिए, गोरला में "देव करसाड़ जात्रा" का आयोजन

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छत्तीसगढ़, बीजापुर - आदिवासी समुदाय की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं और रीति-रिवाजों को संरक्षित करने तथा इन्हें अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के उद्देश्य से "आदिवासी सांस्कृतिक देव बचाओ मंच" द्वारा 8 से 10 जनवरी 2025 तक "देव करसाड़ जात्रा" (मेला) का भव्य आयोजन भोपालपटनम ब्लॉक शहीद वीर नारायण चौक, गोरला में किया जा रहा है।




इस आयोजन के माध्यम से आदिवासी समाज की पहचान, भाषा, परंपराओं, और देवी-देवताओं से जुड़ी आस्था को सहेजना और इस विरासत को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना है। 



देवी-देवताओं का आह्वान - परंपराओं और आस्था का संगम





"देव करसाड़ जात्रा" के भव्य आयोजन में भोपालपटनम ब्लॉक की 35 पंचायतों के 118 गोत्रों के देवी-देवताओं का विधिवत आह्वान और पूजा-अर्चना की गई। यह आयोजन आदिवासी समाज की गहरी आस्था और सांस्कृतिक परंपराओं का प्रतीक बना। आयोजन स्थल पर पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार देवी-देवताओं का स्वागत और उनकी पूजा की गई। प्रत्येक गोत्र ने अपने आराध्य देवी-देवताओं को आयोजन स्थल पर लाकर उनकी विधिवत पूजा संपन्न की। पूजा-अर्चना में आदिवासी समाज के बुजुर्ग, पेरमा पुजारी और गयता ने विशेष भूमिका निभाई।

आदिवासी समुदाय का यह अनूठा आयोजन देवी-देवताओं को एक स्थान पर एकत्रित कर उनकी कृपा प्राप्त करने का माध्यम है। सामूहिक रूप से की गई पूजा ने समाज की एकजुटता और उनके सांस्कृतिक मूल्यों को प्रकट किया। इस दौरान पारंपरिक मंत्रोच्चारण, डोल-नगाड़े, और लोकगीतों ने आयोजन को विशेष रूप से जीवंत बना दिया।

भोपालपटनम की 35 पंचायतों से आए 118 गोत्रों के देवी-देवताओं को इस आयोजन में सम्मिलित करना समाज की धार्मिक परंपराओं को बनाए रखने का एक बड़ा प्रयास है। यह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि आदिवासी समाज की एकजुटता और उनकी सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने का एक सशक्त माध्यम भी है।


सांस्कृतिक कार्यक्रम: आदिवासी परंपराओं का जीवंत प्रदर्शन




"देव करसाड़ जात्रा" के अवसर पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने आदिवासी समाज की समृद्ध परंपराओं और रीति-रिवाजों को रंगीन और जीवंत रूप में प्रस्तुत किया। इन प्रस्तुतियों ने मेले में आए सभी लोगों का मन मोह लिया और आदिवासी संस्कृति की गहराई से परिचित कराया।


हस्तशिल्प और आभूषणों की प्रदर्शनी




चारामा, कांकेर से आए आदिवासी भाईयों द्वारा पारंपरिक आभूषणों की आकर्षक प्रदर्शनी लगाई गई। इसमें आदिवासी संस्कृति के अद्वितीय आभूषण जैसे मुरिया हांसली, बस्तर के गोदना शैली के डिजाइन वाले गहने, और पारंपरिक चांदी के आभूषण शामिल थे। इन आभूषणों ने मेले में आने वाले लोगों का विशेष ध्यान आकर्षित किया।


पारंपरिक वस्त्र और खान-पान


आदिवासी समुदाय के पारंपरिक वस्त्रों की प्रदर्शनी ने भी लोगों को अपनी ओर खींचा। इनमें हाथ से बुने हुए कपड़े, बस्तर की विशेष कड़काई साड़ी, और पारंपरिक आदिवासी पैटर्न वाले वस्त्र शामिल थे। इसके साथ ही, आदिवासी खान-पान की झलक स्थानीय व्यंजन भी आकर्षण का केंद्र रहा।


सांस्कृतिक विरासत का जश्न


यह प्रदर्शनी न केवल आदिवासी समुदाय की परंपराओं को सहेजने का माध्यम बनी, बल्कि बाहरी समाज को आदिवासी जीवनशैली, उनकी कला, और सांस्कृतिक धरोहर से परिचित कराने का अवसर भी प्रदान किया।


युवा जागरूकता सत्र, इतिहास और स्थान का महत्व




युवाओं को आदिवासी समाज के इतिहास, संस्कृति, और अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए चर्चा सत्र शुरू किया गया। गोरला गांव का ऐतिहासिक महत्व बताते हुए अशोक तलाण्डी ने कहा कि यह गांव 300 साल पहले बसा था। यहां का पेन करसाड़ (देवी स्थल) आदिवासियों की आस्था का केंद्र है। वर्तमान में यह स्थल अंतरराज्यीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों का केंद्र बन चुका है।


उन्होंने कहा, "हमने वीर नारायण चौक पर स्वतंत्रता सेनानी वीर नारायण सिंह की मूर्ति स्थापित की है, जो आदिवासी समाज के गौरव और संघर्ष का प्रतीक है। हमारा उद्देश्य इस आयोजन को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाना है ताकि आदिवासी समाज की पहचान को और मजबूती मिले।"


अशोक तलाण्डी ने दिया आदिवासी अधिकारों पर जोर


अशोक तलाण्डी ने अपने वक्तव्य में कहा कि यह आयोजन केवल एक धार्मिक मेला नहीं है, बल्कि यह आदिवासी अधिकारों और उनकी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का आंदोलन है। उन्होंने कहा कि पेसा कानून (PESA Act) और वन अधिकार अधिनियम के तहत आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन, और उनकी आस्था से जुड़े स्थलों को संरक्षित करना शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी है।

उन्होंने कहा, "हमारे पारंपरिक पेन गुड्डी और देवी-स्थलों को संरक्षित करने के लिए गांवों की सीमाओं का सही सीमांकन किया जाना चाहिए ताकि विवादों से बचा जा सके। यह आयोजन आदिवासी समाज की एकजुटता और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने का माध्यम बनेगा।"


अनिल पामभोई ने साझा किया आयोजन का महत्व


अनिल पामभोई ने कहा कि यह मेला चौथे वर्ष आयोजित हो रहा है और यह आदिवासी समाज के लिए गौरव का विषय है। उन्होंने कहा, "हमारे वीर पूर्वज जैसे छत्तीसगढ़ के वीर नारायण सिंह, तेलंगाना के कोमाराम भीम और महाराष्ट्र के सड़मेक बाबूराव ने जल, जंगल, जमीन के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। हमें उनके संघर्षों को याद रखना होगा और उनकी कहानियों से प्रेरणा लेनी होगी।"


यह आयोजन सिर्फ रीति-रिवाजों का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक धरोहर को समझने और अपनाने का अवसर भी प्रदान करता है।


भविष्य में इस आयोजन को और व्यापक बनाने के लिए एक बड़ा सम्मेलन और रैली आयोजित की जाए। इसमें आदिवासी समाज के वरिष्ठजन और युवाओं को जोड़ा जाए ताकि वे अपनी सांस्कृतिक धरोहर को समझ सकें और उसका अनुसरण कर सकें। "देव करसाड़ जात्रा" न केवल आदिवासी समाज की सांस्कृतिक धरोहर का उत्सव है, बल्कि यह समाज में एकजुटता और समृद्धि का प्रतीक भी है।





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