4.70 लाख डेढ़ साल पहले हवा में उड़े फिर एक कमरे में सिमटकर रह गई 27 बच्चों की पढ़ाई

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प्रधानाध्यापक निधन के बाद से पाँच कक्षाओं के स्कूल की जिम्मेदारी सिर्फ एक सहायक शिक्षक के कंधों पर


बीजापुर - कहते हैं शिक्षा वह आधार है जिस पर किसी भी बच्चे के भविष्य की मजबूत इमारत खड़ी होती है। शासन हर वर्ष शिक्षा की गुणवत्ता, सुरक्षित माहौल के लिए करोड़ों रुपये खर्च करती हैं, योजनाएँ बनाती हैं और स्कूलों को बेहतर सुविधाएँ देने की बात करती हैं। लेकिन जमीनी सच्चाई कभी-कभी इतने कड़वे रूप में सामने आती है कि पूरे सिस्टम पर सवाल खड़ा हो जाता हैं। 

बीजापुर जिले की प्राथमिक शाला वरदली इसका जीता-जागता उदाहरण बन हुआ है। जहाँ बच्चों का भविष्य फिलहाल टूटी छत और अभावों के बोझ तले दबा हुआ है। इस स्कूल की कहानी सिर्फ छत की नहीं बल्कि उन 27 मासूम बच्चों के संघर्ष की भी है जो पहली से पाँचवीं तक की पढ़ाई एक ही कमरे में बैठकर करने को मजबूर हैं। और उससे भी बड़ा सवाल यह है कि 27 बच्चों और स्कूल की पूरी जिम्मेदारी सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे पर। 

शाला जतन योजना के तहत 4.70 लाख रुपये खर्च कर मरम्मत किया गया था। मरम्मत करने के महज दो महिने बाद ही चार कमरों वाले इस स्कूल भवन के दो कमरों की छत हवा में उड़कर भवन के सामने जा गिरी। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि शिक्षा के मंदिर में तत्कालीन बीईओ ने भ्रष्टाचार किया, जिसकी जांच आज भी जारी है। जिम्मेदार अधिकारी के किए गए भ्रष्टाचार का नतीजा यहां हुआ की पहली से पाँचवीं तक के सभी 27 बच्चे एक ही छोटे से कमरे मे बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं।

ग्रामीण सुरेश ने बताया कि स्कूल की सबसे बड़ी समस्या भवन की छत और शिक्षक की कमी है। अगस्त में प्रधानाध्यापक के निधन के बाद से पूरी शाला केवल एकमात्र सहायक शिक्षक पर निर्भर है। पढ़ाना, दस्तावेजों का संधारण करना और विभागीय बैठकों में उपस्थित होना, एक शिक्षक के कंधों पर पूरे स्कूल की जिम्मेदारी है। इन परिस्थितियों में बच्चों की पढ़ाई का क्या स्तर होगा, यह समझना मुश्किल नहीं है। लगातार सीएसी और बीईओ कार्यालय में शिक्षक की मांग कर चुके हैं, लेकिन समाधान अब तक नहीं मिल पाया।

वहीं विजय कोरम बीईओ भोपालपटनम का कहना है कि छत की मरम्मत का प्रस्ताव कलेक्टर कार्यालय भेजा गया है और एसआईआर कार्य पूरा होते ही शिक्षक की व्यवस्था भी कर दी जाएगी।

लेकिन सच्चाई यह है कि जब तक स्कूल में शिक्षक नहीं बढ़ेंगे, बच्चों की पढ़ाई पटरी पर आने की कोई संभावना नहीं है। एक शिक्षक पर पाँच कक्षाएँ, यह शिक्षा नहीं, मजबूरी है। वरदली के ये बच्चे हकदार हैं सुरक्षित कमरा, एक शांत वातावरण और पर्याप्त शिक्षकों के ताकि वे संघर्ष नहीं, बल्कि सीख सकें, ताकि उनका भविष्य अभावों पर नहीं, बल्कि शिक्षा पर खड़ा हो सके।


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