बीजापुर - किसी एक परंपरा को जीवंत बनाए रखने के लिए मेहनत, दृढ़ इच्छा शक्ति लगती है और आज के समय में ऐसी परंपराएं कम ही देखने को मिलती है मगर एक ऐसा गांव जहां 35 वर्षों से ग्रामीण दशहरा के त्यौहार पर इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं।
1990 से निरंतर हो रहा आयोजन, हर वर्ष गांव के मंदिर से शुरुआत
भोपालपटनम ब्लॉक के ग्राम केसाईगुड़ा में इस वर्ष भी दशहरा पर्व हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया गया। स्थानीय ग्रामीणों द्वारा आयोजित भव्य रामलीला ने सैकड़ों दर्शकों को रावण के दहन होने तक केसाईगुड़ा में बनाएं रखा। यह परंपरा वर्ष 1990 से लगातार ग्रामीणों व्दारा निभाई जा रही है और अब यह गांव की पहचान का अहम हिस्सा बन चुका है।
ग्रामीणों ने हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी रामलीला के सभी किरदारों का वेश धारण कर गांव के मंदिर में पूजा अर्चना के पश्चात् इस आयोजन को प्रारंभ किया। मंदिर से लेकर नेशनल हाईवे की सड़क तक प्रभु श्रीराम के जन्म से लेकर रावण के वध तक की लीलाओं का सजीव चित्रण प्रस्तुत करते हुए दर्शकों का मनोरंजन और उन्हें नैतिक मूल्यों, धर्म और सच्चाई के जीत से रूबरू कराया। ग्रामीणों ने बताया कि यह आयोजन उनके लिए उत्सव, आस्था और सामाजिक एकता का प्रतीक है।
हजारों की भीड़ उमड़ी, हरा सोना लेकर बधाईयां
स्थानीय निवासी और रामलीला आयोजन के संचालक आनन्द राव करमरका ने बताया कि हर वर्ष रामलीला का आयोजन करते आ रहे है। जिसमें गांव के ही ग्रामीण सभी वेशभूषाओं में सज कर पिछले 35 वर्षों से आयोजन कर रहे हैं। हमारे दशहरा को इसे देखने के लिए बीजापुर जिले के हजारों की संख्या में लोग आते हैं। हमें खुशी है इस बात की कि हम इस परंपरा को निभा रहे हैं।
कार्यक्रम का रोमांचक समापन रावण दहन के साथ हुआ। जैसे ही रावण का पुतला आग की लपटों में जलने लगा आसपास के ग्रामीण और श्रद्धालु हरा सोना (पत्ता) को लेकर एक दुसरे को दशहरे की बधाईयां देने लगे। इस दृश्य ने बच्चों और युवाओं में उत्साह भर दिया, बल्कि बुजुर्ग भी अपनी आस्था और सांस्कृति के अनुसार बधाईयां देने लगे।
35 वर्षों से निरंतर चली आ रही इस परंपरा को केसाईगुड़ा के ग्रामीण जीवित बनाएं रखें हैं। केसाईगुड़ा की यह परंपरा और रामलीला आज भी युवाओं और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है, जो उन्हें अपने मूल्यों और संस्कृति से जोड़ती है।


