क्या डस्टबिन विदेश से मंगवाए गए थे या सोने से जड़े थे? पहले रिपा से मशीनें गायब, फिर सड़कों की दुर्दशा, अब लाखों के डस्टबिन गायब, विकास के नाम पर 'माया जाल'

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  कागजों में बंटे डस्टबिन, हकीकत में गायब, ग्रामीण बोले - डस्टबिन कभी देखा ही नहीं



बीजापुर - पहले रिपा से लाखों रुपये के मशीनें चोरी हुई और अब फिर डस्टबिन अचानक हो गए गायब। जी हां आपने सही पढ़ा - रिपा में लाखों रूपयों के मशीनों की चोरी होने के सात महिने बाद अब एक बार फिर ग्राम पंचायत व्दारा वितरण किया गया डस्टबिन ग्रामीणों को नजर नहीं आ रहे है। ग्रामीण हैरान हैं कि 6 लाख के डस्टबिन अचानक कहां गायब हो गए।


ये गायब होने की घटना भोपालपटनम ब्लॉक के अन्तर्गत ग्राम पंचायत रूद्रारम की है जहां शासन की योजनाओं की जमीन स्तर पर धज्जियां उड़ती नजर आ रही हैं। पंचायत के सरपंच कृष्णावेणी काका और सचिव कोरम विजय द्वारा डस्टबिन खरीदी के नाम पर 6 लाख 17 हजार 700 रुपये की राशि खर्च की गई, लेकिन हकीकत में ग्रामीणों को न तो डस्टबिन मिला, और न ही डस्टबिन नजर आया।


16 वार्ड, 425 मकान और 6 लाख 17 हजार 700 की खरीदी, फिर भी डस्टबिन गायब



ग्राम पंचायत रूद्रारम में कूचनूर, कोनागुड़ा, बोरगुड़ा और रूद्रारम गांव शामिल हैं, जहां कुल 16 वार्ड और लगभग 425 मकान हैं। पंचायत द्वारा कचरे के निपटान के लिए प्रत्येक मकान को डस्टबिन उपलब्ध कराने के नाम पर खरीदी की गई थी। डस्टबिनों की खरीदी के लिए पंचायत ने मार्च 2023 को 17,700 रूपये, अगस्त 2023 को 3 लाख रूपये और दिसंबर 2023 को 3 लाख रूपये कुल मिलाकर 6,17,700 राशि आहरण किया। 


डस्टबिन सिर्फ कागजों में मौजूद? ग्रामीण बोले - हमें तो आज तक दिखा ही नहीं


कम राशि में दूसरे पंचायत का बिल 

आनलाइन डस्टबिन की किमत


पंचायत में किस तरह पैसों का खेल खेला जा रहा है, इसका ताजा उदाहरण अगस्त और दिसंबर 2023 की डस्टबिन खरीदी में देखने को मिला। अगस्त 2023 में ग्राम पंचायत ने 120 नग डस्टबिन प्रति नग 2,500 रुपये की दर से कुल 3 लाख रुपये में खरीदे। लेकिन हैरानी की बात यह रही कि महज कुछ महीनों बाद दिसंबर 2023 में सप्लायर को जैसे ही दया आई, उसने प्रति नग 1,750 रुपये कम करते हुए मात्र 750 रुपये में 400 नग डस्टबिन पंचायत को 3 लाख रुपये में सप्लाई कर दिया और पंचायत ने खुशी-खुशी खरीद भी लिया।


ग्रामीणों का आरोप है कि डस्टबिन केवल हाईवे से लगे मकानों को दिए गए हैं, जबकि ग्राम पंचायत के अन्य वार्डों में रहने वाले लोगों को कोई भी डस्टबिन नहीं मिला। कुछ ग्रामीणों ने यह भी बताया कि “अब तक हमने डस्टबिन देखा ही नहीं है”। इससे स्पष्ट है कि कागजों में लाखों खर्च किए गए, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।


पहले भी लग चुके हैं गंभीर आरोप, 15 सालों से सड़क बदहाली में, 90 लाख अन्य कार्यों में खर्च



यह पहली बार नहीं है जब रूद्रारम पंचायत में वित्तीय अनियमितताओं को लेकर सवाल उठे हों। ग्रामीण पहले भी सरपंच और सचिव पर 90 लाख के खर्च में पारदर्शिता न होने और 15 वर्षों से दलदल में तब्दील हो चुकी सड़कों की मरम्मत न करवाने को लेकर आवाज उठा चुके हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि करोड़ों खर्च होने के बावजूद बुनियादी सुविधाएं नदारद हैं।


क्या होगा कार्रवाई?


रूद्रारम पंचायत में डस्टबिन खरीदी के नाम पर खर्च की गई 6.17 लाख की राशि अब सवालों के घेरे में है। ग्रामीणों को डस्टबिन नजर नहीं आया, और जिम्मेदार जवाब देने की स्थिति में नहीं हैं। रिपा से मशीनों के गायब होने के सात महीने बाद यह दूसरी बड़ी अनियमितता है, जिससे यह साफ हो गया है कि पंचायत में योजनाएं जमीन पर नहीं, सिर्फ कागजों में फल-फूल रही हैं।


जिस डस्टबिन की बाजार में कीमत 400 से 600 रुपये के बीच है, वही डस्टबिन पंचायत ने 2,500 रुपये प्रति नग की दर से खरीदा।  क्या पंचायत ने ये डस्टबिन विदेशों से इंपोर्ट किए थे या इनमें सोने की परत चढ़ी हुई थी? जनता के पैसे से की गई इस मनमानी खरीदी ने पूरे सिस्टम पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। आखिर पंचायत और सप्लायर के बीच ऐसा कौन-सा खास रिश्ता था कि दाम चार गुना तक बढ़ा दिए गए?


प्रशासन को इस मामले में सख्त कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि भविष्य में जनहित की योजनाएं, जनहित में ही लागू हो सकें न कि फाइलों और बिलों में ही खो जाएं।



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