बीजापुर - जिले के भोपालपटनम ब्लॉक के ग्राम उल्लूर संजयपारा की शासकीय प्राथमिक शाला बीते 6 वर्षों से किचन शेड में संचालित हो रही है। यह स्कूल विकासखंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, लेकिन हालात देखकर यह यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि यह स्कूल किसी प्रशासन निगरानी के दायरे में आता है।
10 वर्षों से जर्जर भवन, मिट्टी से लिपाई, पानी में पढ़ाई
इस शाला का मूल भवन 1997 में निर्मित हुआ था, लेकिन पिछले 10 वर्षों से पूरी तरह जर्जर अवस्था में है। भवन की दीवारों पर दरारें आ चुकी हैं, छत झुक गई है और कभी भी हादसा हो सकता है। सुरक्षा को देखते हुए शाला का संचालन पिछले 6 वर्षों से किचन शेड में किया जा रहा है।
प्रधानाध्यापक श्यामनाथ यादव ने बताया कि किचन शेड में कोई पक्का फर्श नहीं है। फर्श को मिट्टी से लिपाई किया जाता है और बारिश के दिनों में शेड के भीतर पानी भर जाता है, जिसमें बच्चे बैठकर पढ़ने को मजबूर होते हैं। यह दृश्य शिक्षा की गुणवत्ता से ज्यादा, बारिश के दिनों में शिक्षा के लिए संघर्ष की मिसाल पेश करता है।
कई प्रस्ताव, फिर भी नहीं मिला समाधान, संसाधन नहीं, पर विद्यार्थियों के हौसले बुलंद
स्कूल प्रबंधन समिति और ग्रामीणों ने ग्राम पंचायत के माध्यम से भवन को डिस्मेंटल कर नया निर्माण कराने के लिए विकासखंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय में कई प्रस्ताव भेजे। इतना ही नहीं, सुशासन तिहार में भी ग्रामीणों ने आवेदन दिया, लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई।
हालात चाहे जैसे भी हों, लेकिन संघर्ष के इस वातावरण में भी उम्मीद की किरण चमकी है। इसी विद्यालय की छात्रा लावन्या कुरगुड़ का चयन जवाहर नवोदय विद्यालय में हुआ है। यह इस बात का प्रमाण है कि प्रतिभा संसाधनों की मोहताज नहीं होती, लेकिन उसे पंख देने के लिए न्यूनतम सुविधाएं तो जरूरी हैं।
क्या यही है शिक्षा का अधिकार?
अब सवाल यह उठता है कि क्या एक प्रतिभाशाली बच्चे को ढंग की कक्षा तक नसीब नहीं होनी चाहिए? क्या शिक्षा के अधिकार की असल तस्वीर यही है, जहाँ किचन शेड ही क्लासरूम बन गया है? क्या यह प्रशासन की लापरवाही नहीं, बल्कि संवेदनहीनता की मिसाल नहीं है?
बच्चे कीचड़ और मिट्टी में बैठकर ज्ञान की अलख जगा रहे हैं, शिक्षक जर्जर दीवारों के बीच भविष्य गढ़ रहे हैं, और प्रशासन तमाशबीन बनकर देख रहा है।






