बीजापुर - जंगलों में आग लगने की घटनाएं वन्य जीवन के लिए खतरे की घंटी हैं, लेकिन इससे भी बड़ा खतरा तब बन जाता है जब जिम्मेदार विभाग ही मौन साध ले। कोन्गुपल्ली कैंप से महज 2 किलोमीटर दूर, नेशनल हाईवे 63 से करीब 50 मीटर की दूरी पर मद्देड़ रेंज के बफर जोन और सामान्य दोनों ही तरफ जंगलों में आग भड़की हुई है। यह आग पिछले दो घंटे से लगी हुई है, लेकिन मौके पर न कोई वनरक्षक है, न ही कोई फायर वाचर।
सैटेलाइट से पता चलने के दावे हुए बेअसर
वन विभाग के अधिकारियों द्वारा यह दावा किया गया कि अब जंगलों में आग लगने की जानकारी किसी ग्रामीण से नहीं, बल्कि सीधे सेटेलाइट के माध्यम से मिलती है। सेटेलाइट से आग लगने का स्थान और दिशा चिन्हित होती है और उसी के आधार पर तत्काल एक्शन लिया जाता है। मगर इस बार यह पूरा सिस्टम ही फेल होता दिख रहा है।
रेंजर और वरिष्ठ अधिकारी से संपर्क की कोशिश नाकाम, लापरवाही से उठे सवाल
जंगल में आग लगने की सूचना देने के लिए जब रेंजर कृष्ण कुमार नेताम को दो बार कॉल किया गया, तो उन्होंने फोन नहीं उठाया। तीसरी बार कॉल करने पर उन्होंने फोन उठाकर तुरंत काट दिया। एक आपात स्थिति में रेंजर का इस तरह का व्यवहार पूरी व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
वहीं, डीएफओ इंद्रावती टाइगर रिजर्व संदीप बलगा से जब कॉल पर संपर्क किया गया, तो उन्होंने बात सुनने तक की फुर्सत नहीं दिखाई। उन्होंने यह कहकर फोन काट दिया कि, "व्यस्त हूं, आप लोकेशन मैसेज कर दें।" ऐसे समय में जब जंगल में आग फैली हो, अधिकारियों का यह रवैया गैरजिम्मेदाराना ही नहीं, बल्कि वन्य क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था की गंभीर खामियों को उजागर करता है।
जब जिम्मेदार अधिकारी ही आपदा की सूचना पर प्रतिक्रिया देने में असफल हैं, तो वन्य जीवों की सुरक्षा और जंगलों को आग से बचाने की जिम्मेदारी कौन निभाएगा?
जिम्मेदार कहां हैं?
जब सेटेलाइट से सब कुछ पता चल जाता है, तो फिर विभाग को इस आग की खबर क्यों नहीं मिली? और यदि मिली भी, तो अब तक विभाग ने कोई कदम क्यों नहीं उठाया? इस आग से न केवल पेड़-पौधों को नुकसान हो रहा है, बल्कि वन्य जीवों के जीवन पर भी खतरा मंडरा रहा है।
एक तरफ विभाग के पास सैटेलाइट से निगरानी करने की सुविधा है, तो दूसरी तरफ मौके पर कोई जिम्मेदार अधिकारी या संसाधन नजर नहीं आ रहा है। जब आग लगने की जानकारी सैटेलाइट से मिल जाती है, तो विभाग को दो घंटे तक इसकी भनक क्यों नहीं लगी? जिन फायर वॉचर्स और वनरक्षकों की ड्यूटी मौके पर तैनात होने की थी, वे आखिर कहाँ हैं? क्या जंगल और वन्य जीवों की सुरक्षा अब सिर्फ रिपोर्टों और प्रेस विज्ञप्तियों तक सीमित रह गई है?


