रायपुर - छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ लगातार चल रहे एंटी-नक्सल ऑपरेशनों और सरकार की आक्रामक नीति ने माओवादियों को बैकफुट पर ला दिया है। मुठभेड़ों में भारी नुकसान, बड़े कैडरों की मौत और आत्मसमर्पण की बढ़ती संख्या के बीच माओवादियों ने अब सरकार से संघर्ष विराम और शांति वार्ता की मांग की है। हालांकि, छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री एवं गृहमंत्री विजय शर्मा ने साफ कर दिया है कि सरकार वार्ता के लिए तैयार है, लेकिन हिंसा पर कोई समझौता नहीं होगा।
माओवादियों की प्रेस विज्ञप्ति - "कगार ऑपरेशन" पर आरोप
28 मार्च को माओवादी पार्टी की केंद्रीय समिति ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर प्रवक्ता 'अभय' के हवाले से कहा गया कि जनवरी 2024 से शुरू हुए 'कगार ऑपरेशन' के तहत केंद्र की "ब्राह्मणवादी हिंदुत्व फासीवादी सरकार" ने आदिवासी क्षेत्रों में युद्ध छेड़ रखा है। विज्ञप्ति में दावा किया गया कि इस ऑपरेशन में 400 से अधिक माओवादी कार्यकर्ताओं की हत्या की गई, जिनमें एक तिहाई सामान्य आदिवासी नागरिक थे।
माओवादियों ने इसे "नरसंहार" करार देते हुए आरोप लगाया कि सरकार बिना संवैधानिक अनुमति के सेना का इस्तेमाल कर रही है, जो संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों से इस ऑपरेशन को रोकने की अपील की और कहा कि यदि उनकी मांगें मानी जाती हैं, तो वे तत्काल संघर्ष विराम की घोषणा करने को तैयार हैं।
उपमुख्यमंत्री का जवाब - "संविधान स्वीकार करें, हिंसा छोड़ें"
माओवादियों की इस प्रेस विज्ञप्ति के जवाब में छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने सख्त और स्पष्ट रुख अपनाया। रायपुर में एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "सरकार नक्सल समस्या के समाधान के लिए पूरी गंभीरता से प्रयास कर रही है। हम सार्थक वार्ता के लिए तैयार हैं, लेकिन इसके लिए कोई शर्त नहीं होनी चाहिए।"
श्री शर्मा ने नक्सलियों से कहा कि यदि वे वास्तव में मुख्यधारा में लौटना चाहते हैं, तो उन्हें अपने प्रतिनिधियों के नाम और वार्ता की शर्तों को सार्वजनिक रूप से स्पष्ट करना होगा। उन्होंने जोर देकर कहा, "वार्ता का आधार भारतीय संविधान होना चाहिए। अगर वे संविधान को नकारते हैं और समानांतर व्यवस्था थोपने की कोशिश करते हैं, तो ऐसी वार्ता का कोई औचित्य नहीं है।"
उपमुख्यमंत्री ने माओवादियों के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि सरकार की नीति हिंसा को खत्म करने और शांति स्थापित करने की है। उन्होंने छत्तीसगढ़ की पुनर्वास नीति को "अब तक की सबसे बेहतर" बताते हुए कहा, "जो नक्सली आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में लौटना चाहते हैं, उनके लिए सुरक्षा, पुनर्वास और रोजगार के अवसर तैयार हैं। हम चाहते हैं कि भटके हुए लोग समाज का हिस्सा बनें।"
उन्होंने यह भी बताया कि हाल के वर्षों में बड़ी संख्या में नक्सलियों ने हथियार डाले हैं, जो सरकार की नीति की सफलता का सबूत है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सरकार की प्रगति पर प्रकाश डालते हुए कहा, "पिछले डेढ़ साल में 40 गांवों में पहली बार तिरंगा फहराया गया है, जहां पहले नक्सली अपने कानून थोपते थे। अब हर गांव में संविधान का पालन और तिरंगे का सम्मान अनिवार्य है।" उन्होंने इसे लोकतंत्र और शांति की जीत करार दिया।
नक्सलियों को चुनौती - "समिति बनाएं, प्रस्ताव लाएं"
उपमुख्यमंत्री ने माओवादियों की शांति वार्ता की मांग पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार ने पहले भी 10 से अधिक बार वार्ता की पहल की थी, लेकिन नक्सली हर बार पीछे हट गए। "अगर वे अब गंभीर हैं, तो अपनी ओर से वार्ता के लिए समिति बनाएं और स्पष्ट प्रस्ताव लेकर आएं।"
हालांकि, उन्होंने यह भी दोहराया कि सरकार का रुख अडिग है। "बातचीत के दरवाजे खुले हैं, लेकिन हिंसा और खूनखराबे पर कोई समझौता नहीं होगा। नक्सलियों को हथियार छोड़कर आत्मसमर्पण करना होगा, तभी कोई सार्थक समाधान संभव है," श्री शर्मा ने कहा।
माओवादियों की शांति वार्ता की मांग और सरकार के जवाब से साफ है कि छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है। जहां नक्सली दबाव में संघर्ष विराम की बात कर रहे हैं, वहीं सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि शांति का रास्ता केवल संविधान और आत्मसमर्पण से होकर गुजरता है। आने वाले दिन इस संकट के समाधान की दिशा तय करेंगे।



