वन विभाग की कार्रवाई या नाकामी? सागौन तस्करी फिर उजागर, सालाना लाखों वेतन पाने वाले क्या कर रहे हैं?

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बीजापुर - जंगलों की सुरक्षा और तस्करी पर रोक लगाने की जिम्मेदारी उठाने वाले वन विभाग की कार्यप्रणाली एक बार फिर सवालों के घेरे में है। तारलागुड़ा फॉरेस्ट नाके पर विभाग की टीम ने तेलंगाना तस्करों द्वारा उपयोग की जा रही टवेरा वाहन क्रमांक AP 36 AS 5920 को रोका। तलाशी लेने पर वाहन से 08 नग सागौन लट्ठे बरामद किए गए, जिनकी कुल मात्रा 0.586 घन मीटर है। इसकी बाजार कीमत लगभग 55,000 रुपये आंकी गई।

वन विभाग की सक्रियता से वाहन और सागौन लट्ठे जब्त कर लिया है, लेकिन तस्कर मौके से फरार हो गए। बरामद सागौन लट्ठों को भोपालपटनम डिपो में सुरक्षित रखा गया है और फरार तस्करों की तलाश की जा रही है।

कार्रवाई सराहनीय है, लेकिन सवाल यह है कि जब जंगल में लगातार सागौन के पेड़ काटे जा रहे हैं और हर बार सागौन लट्ठे, पारा और चिरान पकड़ा जा रहा है तो आखिर यह कटाई किसकी लापरवाही में हो रही है? क्या यह विभाग की नाकामी है, या फिर विभाग के संरक्षण में तस्करी का यह कारोबार चल रहा है?

गौरतलब है कि हर इलाके में बिटगार्ड गार्ड की नियुक्ति की गई है। डेप्यूटी रेंजर, एसडीओ और डीएफओ इनकी सीधी जिम्मेदारी है कि वे अपने क्षेत्र में पेड़ों और वन्यजीवों का संरक्षण करें। सालाना लाखों रुपये वेतन लेकर फॉरेस्ट गार्ड, अन्य कर्मचारी और अधिकारी जंगल की सुरक्षा के नाम पर पदस्थ हैं, मगर जमीनी स्तर पर न तो पेड़ों को बचाने की ईमानदारी दिख रही है और न ही वन्यजीवों की रक्षा हो रही है।

तारलागुड़ा बार्डर पर सागौन लट्ठे, पारा और चिरान पहले भी कई बार पकड़ा जा चुका है। इसके बावजूद तस्करी का सिलसिला जारी है। सिर्फ तस्करों पर कार्रवाई करने से बात नहीं बनेगी, बल्कि वन विभाग के कर्मचारी और अधिकारी की जवाबदेही तय करना जरूरी है।

जंगल और वन्यजीवों की सुरक्षा पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन नतीजा सामने है पेड़ अब भी कट रहे हैं और तस्करी का खेल जारी है।



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