सालों से जर्जर माध्यमिक शाला भवन, बिना शौचालय और एक कमरे में तीन कक्षाओं का संचालन - अधिकारी अब भी मौन

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छात्रों की शिक्षा पेड़ के नीचे, बरसात में एक ही कमरे में ठुंसे जाते हैं बच्चे


बीजापुर - जिले में विगत तीन वर्षो से अतिरिक्त कक्ष में माध्यमिक स्कूल का संचालन किया जा रहा है जहां विद्यार्थियों के पढ़ाई की स्थिति देखकर कोई भी हैरान रह जाएगा। शिक्षा का अधिकार तो कागजों में दिखता है, लेकिन जमीनी हकीकत बेहद दयनीय है। जहां वर्षों से यह स्कूल अतिरिक्त कक्ष के सहारे संचालित हो रही है।


मामला भोपालपटनम ब्लॉक के सण्ड्रापल्ली गांव की माध्यमिक शाला का है। इन दिनों शिक्षा विभाग की बेरुखी और प्रशासनिक सुस्ती की जीती-जागती मिसाल बन चुकी है जहां तीनों कक्षाएं क्रमशः 6वीं, 7वीं और 8वीं एक ही रूम में संचालित की जा रही है।

एक ही कमरे में तीन कक्षाएं – क्या यही है “समावेशी शिक्षा”?


विद्यालय में लगभग 30 विद्यार्थियों की दर्ज संख्या है जिसमें 14 छात्र एवं 16 छात्राएं शामिल हैं। विद्यालय के नाम पर केवल एक अतिरिक्त कक्ष है, जिसमें कक्षा 6वीं, 7वीं और 8वीं के बच्चों को एक साथ बैठाकर पढ़ाया जाता है। बरसात के समय में सभी बच्चे उसी एक कमरे में ठूंस दिए जाते हैं, जबकि बाकी मौसमों में ये कक्षाएं कभी पेड़ के नीचे, तो कभी खुले मैदान में अलग-अलग संचालित की जाती हैं। सोचने वाली बात यह भी है कि एक ही रूम में तीनों कक्षाओं की क्लास किस तरह ली जा रही होगी।

क्या शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने कभी मौके पर जाकर यह देखा है कि तीन कक्षाएं एक साथ एक कमरे में कैसे संचालित होती हैं?

जर्जर भवन बना जान का खतरा, फिर भी नहीं हो रही कोई कार्रवाई


माध्यमिक शाला का पुराना भवन जर्जर अवस्था में है, जिसकी छत पूरी तरह झुक चुकी है। छत से सीमेंट का प्लास्टर निरंतर गिर रहा है जिससे कभी भी बड़ी दुर्घटना हो सकती है। प्रधानाध्यापक बी.आर. गोन्दी ने बताया कि भवन की स्थिति अत्यंत गंभीर है, इसीलिए बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कक्षाएं वहां नहीं ली जाती है।

जब प्रधानाध्यापक ने पहले ही प्रस्ताव भेज दिया था, तो अब तक नया भवन क्यों स्वीकृत नहीं हुआ? क्या शिक्षा विभाग किसी दुर्घटना का इंतज़ार कर रहा है ताकि तब “जिम्मेदारों की सूची” तैयार की जा सके?

शौचालय नहीं, लेकिन छात्राएं हैं - आखिर वे जाएं तो कहां जाएं?


विद्यालय में 16 छात्राएं अध्ययनरत हैं, छात्राओं के लिए कोई भी उपयोगी शौचालय उपलब्ध नहीं है। पूर्व में बना शौचालय अब पूरी तरह जर्जर हो चुका है और उपयोग के लायक नहीं रहा। वर्षों से ही एक शौचालय बन रहा है, लेकिन अब तक सिर्फ 4-5 फीट ऊंचाई की दीवार ही खड़ी हो पाई है।

क्या बालिकाओं की गरिमा और स्वास्थ्य शिक्षा विभाग के लिए कोई मायने नहीं रखते? शौचालय निर्माण का बजट कहां गया? जिम्मेदार कौन है?


और कब जागेगा शिक्षा विभाग?

सवाल यह है कि यदि स्कूल भवन की यह स्थिति है, तो इन बच्चों का भविष्य कौन संवारने आएगा? क्या शिक्षा विभाग और जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी नहीं बनती कि इस शाला के लिए तुरंत स्थायी भवन एवं मूलभूत सुविधाएं सुनिश्चित करें?


अब देखना होगा कि नए भवन की स्वीकृति और निर्माण कब तक धरातल पर आता है। या फिर यह मुद्दा भी बाकी समस्याओं की तरह कागजों में ही दबकर रह जाएगा।



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