मरम्मत के नाम पर मजाक, टाइल्स - पुट्टी कर 4.50 लाख का हिसाब चुकता, प्रधानाध्यापक और बीईओ की भूमिका सवालों के घेरे में

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भवन अधूरा, भुगतान पूरा, बच्चों को किचन शेड, जिम्मेदारों को चुप्पी


बीजापुर - छत से टपकता पानी, दीवारों में सीलन, बिजली व्यवस्था ठप और खिड़की-दरवाजों की हालत खस्ता हम बात कर रहे हैं भोपालपटनम ब्लॉक के कोनागुड़ा प्राथमिक शाला की। जहां मुख्यमंत्री जतन योजना के तहत प्राथमिक शाला कोनागुड़ा भवन की मरम्मत के लिए 4.50 लाख रुपये की स्वीकृति दी गई थी। मरम्मत के नाम पर यह पूरी राशि डकार ली गई, लेकिन शाला भवन की हालत आज भी बद से बदतर है।

खराब छत और टपकता पानी, बच्चे पढ़ाई को मजबूर किचन शेड में

भवन में लगातार छत से पानी टपकने के कारण बच्चों को क्लासरूम की जगह पुराने जर्जर किचन शेड में बैठकर पढ़ाई करनी पड़ रही है। बारिश के मौसम में ये स्थिति और भी खराब हो जाती है। ग्रामीणों ने खुद मेहनत कर शेड को थोड़ा बेहतर बनाया, रंगाई-पुताई करवाई और गिरते सज्जा को हटाया, लेकिन इस सुधार कार्य की मजदूरी तक का भुगतान नहीं किया गया है।


ग्रामीणों का आरोप है कि पूरे 4.50 लाख में से केवल टाइल्स और पुट्टी का काम किया गया, पीछे का आधा भवन वो भी आधा-अधूरा। न छत की मरम्मत हुई, न बिजली का काम और न ही खिड़की-दरवाजों की मरम्मत की गई।

प्रधानाध्यापक और तत्कालीन बीईओ की मिलीभगत पर गंभीर सवाल

शाला प्रबंधन समिति के अध्यक्ष सोढ़ी वेंकट और ग्रामीणों ने बताया कि काम अधूरा होने के बावजूद तत्कालीन बीईओ प्रवीण लाल कुडे़म ने स्पष्ट शब्दों में कहा था, “शिकायत मत कीजिए, काम पूरा कर देंगे।” समिति से केवल एक बार हस्ताक्षर करवा कर पूरी राशि का आहरण कर लिया गया, पर कितनी राशि कहां खर्च हुई, इसकी जानकारी तक अध्यक्ष को नहीं है।

ग्रामीणों ने किया सवाल – फिर कहां गया 4.50 लाख?

जब इस विषय पर प्रधानाध्यापक शेषाराव काका से सवाल किया गया तो उन्होंने बीईओ प्रवीण लाल कुडे़म पर ही जिम्मेदारी डाल दी। उन्होंने कहा कि बीईओ के कहने पर उन्होंने बगैर नाम और राशि अंकित किए मात्र हस्ताक्षर कर चेक दिया और उसी के माध्यम से राशि निकाली गई।

ग्रामीणों ने शाला भवन की स्थिति को देखते हुए 10 दिन पूर्व ही स्वयं किचन शेड में प्लास्टर कर, सज्जा हटाकर रंगाई-पुताई कर दी, लेकिन इसकी मजदूरी का अब तक भुगतान नहीं मिला। प्रधानाध्यापक द्वारा कहा गया कि इसके लिए 10,000 रूपए की स्वीकृति है। लेकिन वह भी आज तक ग्रामीण मजदूरों को नहीं मिली।

बच्चों के साथ हो रहा अन्याय – जवाबदेही कौन तय करेगा?

एक ओर शासन बच्चों के भविष्य को लेकर सुदूर क्षेत्रों में स्कूलें खुलवा रही है, वहीं जमीनी हकीकत यह है कि मरम्मत के पैसों की बंदरबांट हो रही है। बच्चों को सुरक्षित वातावरण देने के बजाय उन्हें टपकती छत और कीचड़भरे किचन शेड में पढ़ाई के लिए मजबूर किया जा रहा है।

इस पूरे मामले में तत्कालीन बीईओ प्रवीण लाल कुडे़म और प्रधानाध्यापक शेषाराव काका की भूमिका संदिग्ध है। ग्रामीणों और समिति के सदस्यों की मांग है कि मरम्मत कार्य की जांच हो और दोषियों से पैसे की वसूली करते हुए उनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाए।

अब देखना होगा कि क्या बीजापुर जिला प्रशासन इस गंभीर मामले पर कोई कार्रवाई करता है या फिर यह भी अन्य भ्रष्टाचार के मामलों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा।








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