माओवादी संगठन ने जारी किया बयान, तोड़का गांव में 8 आदिवासियों की कथित फर्जी मुठभेड़ में हत्या करने का आरोप

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बीजापुर - जिले के गंगालूर क्षेत्र के तोड़का गांव में 1 फरवरी को हुई कथित फर्जी मुठभेड़ को लेकर भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की दक्षिण सब जोनल ब्यूरो ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। माओवादी संगठन ने इस घटना को एक "नरसंहार" करार देते हुए दावा किया है कि सुरक्षाबलों ने आम ग्रामीणों को निर्दोष होते हुए भी मार डाला।




माओवादी संगठन की प्रवक्ता 'समता' द्वारा जारी प्रेस बयान में कहा गया है कि यह हत्याकांड केंद्र और राज्य सरकार द्वारा "ऑपरेशन कगार" के तहत माओवादी संगठन को खत्म करने के उद्देश्य से किया गया है। बयान में पुलिस व सुरक्षाबलों पर फर्जी मुठभेड़ रचने, निर्दोष ग्रामीणों को निशाना बनाने और बड़े पैमाने पर मानवाधिकार हनन करने का आरोप लगाया गया है।


क्या था मामला?




गंगालूर थाना क्षेत्र में सूचना मिली थी कि माओवादी नेता DVCM दिनेश मोड़ियम और अन्य सशस्त्र माओवादी तोड़का-कोरचोली जंगल में सक्रिय हैं।


इस सूचना के आधार पर डीआरजी, एसटीएफ, कोबरा 202 और केरिपु 222 बटालियन की संयुक्त टीम नक्सल विरोधी अभियान पर निकली।




1 फरवरी 2025 की सुबह 08:30 बजे माओवादी और सुरक्षाबलों के बीच भीषण मुठभेड़ हुई, जो रुक-रुक कर कई घंटों तक चलती रही। मुठभेड़ के बाद क्षेत्र की तलाशी लेने पर 8 हार्डकोर माओवादियों के शव बरामद किए गए।


त्यौहार की रात गांव में हुई घेराबंदी, आदिवासियों की हत्या


प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, 1 फरवरी को तोड़का गांव में गादे पंडूम त्यौहार मनाने के लिए आसपास के ग्रामीण एकत्र हुए थे। इसी दौरान सीआरपीएफ, कोबरा, एसटीएफ, बस्तर फाइटर्स और डीआरजी के जवानों ने गांव को चारों तरफ से घेर लिया और ग्रामीणों पर अंधाधुंध फायरिंग की। इस हमले में तोड़का गांव के ताती शंकर, ताती मंगाल, ताती कमलू, ताती रानू, ताती सन्नू और कोरचिल गांव के पदाम बीजू, ताती लच्छू, नीलकंड कमलेश की हत्या कर दी गई।


माओवादी संगठन ने यह भी दावा किया कि इस गोलीबारी में 24 अन्य ग्रामीण गंभीर रूप से घायल हुए, जबकि 67 लोगों को हिरासत में लेकर बीजापुर थाने ले जाया गया, जहां उन्हें यातनाएं दी जा रही हैं। संगठन ने पुलिस के उन बयानों को भी झूठा करार दिया है, जिसमें मुठभेड़ में माओवादियों के मारे जाने और हथियार बरामद करने का दावा किया गया था।


पिछले दिनों भी हुई फर्जी मुठभेड़ का जिक्र


माओवादी संगठन ने अपने बयान में पहले हुई घटनाओं को भी उल्लेख किया, जिनमें सुरक्षा बलों द्वारा कथित रूप से निर्दोष ग्रामीणों की हत्या की गई थी।


11 दिसंबर 2024: मुरंगा गांव में माड़वी पांडू को भगाकर मारा गया।

16 जनवरी 2025: सिंगनपल्ली-पुजारी कांकेर, तमेलबट्टी इलाके में 8 पीएलजीए कार्यकर्ताओं और 4 आम ग्रामीणों की हत्या।

सैकड़ों आदिवासियों को "नक्सली" बताकर जेलों में बंद किया गया।

"ऑपरेशन कगार" के नाम पर आदिवासियों पर अत्याचार का आरोप।


माओवादी संगठन ने आरोप लगाया कि केंद्र और राज्य सरकार "ऑपरेशन कगार" के तहत बस्तर क्षेत्र को पुलिस छावनी में तब्दील कर रही है। पिछले सालभर में 20 नए पुलिस कैंप स्थापित किए गए हैं, जहां से आए दिन सुरक्षाबलों द्वारा ग्रामीणों पर हमले किए जा रहे हैं।


बयान में यह भी आरोप लगाया गया कि पुलिस और सुरक्षा बलों द्वारा आदिवासी गांवों पर हमले, निर्दोष ग्रामीणों की हत्या, महिलाओं पर अत्याचार, जबरन हिरासत और यातना, लूटपाट और संपत्तियों को जलाने जैसी कार्रवाइयाँ की जा रही हैं।


माओवादी संगठन ने भारतीय सेना को भी इन हमलों में शामिल बताते हुए कहा कि 81MM रॉकेट लॉन्चरों से बमबारी की जा रही है, और ड्रोन विमानों से निगरानी रखी जा रही है।


बयान में कहा गया कि केंद्र में भाजपा सरकार और आरएसएस की विचारधारा के तहत बस्तर क्षेत्र के आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल करने की साजिश रची जा रही है।


मानवाधिकार संगठनों और बुद्धिजीवियों से हस्तक्षेप की अपील


माओवादी संगठन ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों, छत्तीसगढ़ बचाओ मंच, PUCL, मीडिया कर्मियों और अन्य जन संगठनों से इस नरसंहार की निष्पक्ष जांच कराने और दोषियों को सजा दिलाने की मांग की है।


संगठन ने देशभर में जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए चल रहे आंदोलनों का समर्थन करने और "ऑपरेशन कगार" के खिलाफ आवाज बुलंद करने की भी अपील की है।


क्या कहती है सरकार और पुलिस?


सरकारी और पुलिस सूत्रों से इस घटना को लेकर अभी तक कोई विस्तृत बयान नहीं आया है। हालांकि, सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में माओवादियों के मारे जाने और भारी मात्रा में हथियार बरामद होने का दावा किया था।


बीजापुर जिले में हुई इस घटना ने एक बार फिर सुरक्षा बलों और आदिवासी ग्रामीणों के बीच संघर्ष को उजागर कर दिया है। जहां सरकार इसे माओवादियों के खिलाफ एक सफल ऑपरेशन मान रही है, वहीं माओवादी संगठन इसे आम आदिवासियों का "नरसंहार" बता रहे हैं। इस पूरे घटनाक्रम की निष्पक्ष जांच की मांग बढ़ सकती है।



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